Saturday, May 2, 2020

ग़ज़ल



उजड़े हुए हर बाग में, अब गुल खिलाना चाहिए,
निर्जन बने हर गाँव को, फिर से बसाना चाहिए।

गर चाहता है आदमी, आजाद अपनी ज़िंदगी,
पहले उसे पिंजरे का हर, पंछी उड़ाना चाहिए।

मगरूर होकर के बहुत, सुख में गुजारा वक्त गर,
अब दु:ख अगर आया है तो, हँसकर बिताना चाहिए।

जो मुल्क के हर काम में, अवरोध बनते हैं सदा
ऐसे सभी गद्दारों को, जड़ से मिटाना चाहिए

इस पल दो पल के साथ को, जी भर के जीलो यार तुम,
जो भी हुए अनुभव बुरे, अब भूल जाना चाहिए।

वो बोलते हमसे नही, रूठे हुए है इस कदर
है दिल हमारा कह रहा, उनको मनाना चाहिए

भौतिक सुखों की दौड़ में अब थक गया हूँ मैं “जिगर”
सुख चैन के क्षण मिल सकें, ऐसा ठिकाना चाहिए।

@ मुकेश पाण्डेय "जिगर" - अहमदाबाद



8 comments: