Thursday, May 20, 2021

गीत (कोरोना महामारी और पर्यावरण को समर्पित)



कैद है आज पिंजरे में हर आदमी,
और उड़ना परिंदो का आसान है।
जान लेता है चुन–चुन के इंसान की,
जानवर पर शिकारी मेहरबान है।

इस धरा पर सभी श्रोत भरपूर थे,
नाश हमने स्वयं ही बहुत कुछ किया।
प्यार से पालती हम को कुदरत रही,
और हमने उसी को प्रदूषित किया।
कष्ट देते रहे जिन सजीवों को हम,
आज वो हैं सुखी जग परेशान है।
कैद है आज ..............................

दी दवा, फूल, फल जिस शजर ने हमें,
बेरहम बन उसे काटते हम रहे।
तुच्छ समझा किए सारे जीवों को हम,
खुद को सर्वोपरी मानते हम रहे।
मर्ज ऐसा दिया इस अगोचर ने की,
आदमी जिस की औषध से अंजान है।
कैद है आज ...............................

हमने मीलें बना डालीं वन काट कर,
होड़ ऐसी लगी अंधे उत्कर्ष की।
बंद हैं आज उध्योग धंधे सभी,
आ गई है घड़ी ऐसे संघर्ष की।
याद फिर आ गया गाँव हर शख्स को,
हर शहर इक बिमारी से हैरान है।
कैद है आज ..........................
       --- मुकेश पाण्डेय “जिगर”