Friday, September 18, 2020

ग़ज़ल: चंदन लगाकर मूर्ख भी पंडित बने है देखिए ।


ग़ज़ल

अपने ही मुँह मिट्ठू मिया बनने लगे हैं देखिए
चन्दन लगाकर मूर्ख भी, पंडित बने हैं देखिए।

नीचा दिखाना गैर को, जिनकी रही फितरत सदा,
अपनी ही नजरों में वो खुद, अब गिर चुके हैं देखिए।

रचते रहे जो उम्र भर, षड्यंत्र गैरों के लिए,
सबको फँसाने वाले वो
, अब खुद फँसे हैं देखिए।  

कैसे करोगे तुम “जिगर”, उम्मीद गैरों से कोई,
भाई भी अब तो भाई से
, जलने लगे हैं देखिए।

कैसे ये मानूँ मैं “जिगर”, मुझसे मुतासिर वो नही,
उसने हमारे शेर ही
, खत में लिखे हैं देखिए। 

         --- मुकेश पाण्डेय “जिगर”

 

Friday, September 11, 2020

गीत: हिंदी दिवस पर

     गीत

हम सदा सबकी भाषा का आदर करें,
पर हमें अपनी हिन्दी का अभिमान हो ।
अब हरेक दिन हमारा हो हिन्दी दिवस
,
हिन्द की अब तो हिन्दी ही पहचान हो।

खो गए पश्चिमी सभ्यता में यूँ हम,
हिन्दी भाषा का अपमान करते रहे।
अपनी माता का आदर न कर पाए हम
,
और मौसी का सम्मान करते रहे।
सीखते हम रहें सबकी भाषा भले
,
अपनी भाषा से लेकिन न अंजान हों।
हम सदा सबकी भाषा का आदर करें
,
पर हमें अपनी हिन्दी का अभिमान हो।

एक धागे में सबको पिरोती है जो,
एकता की लड़ी है बनाती सदा।
दूरियाँ दो दिलों की घटाती है जो
,
सबका संपर्क सबसे कराती सदा।
देशव्यापी से ये विश्वव्यापी बने
,
सारी दुनिया में हिन्दी का गुणगान हो।
हम सदा सबकी भाषा का आदर करें
,
पर हमें अपनी हिन्दी का अभिमान हो।

होने देंगे न हिन्दी का अपमान हम,
आज खुद को ही खुद ये वचन दीजिए।
हिन्दी भाषा का गौरव बढ़ाएँगे हम
,
आज हिन्दी दिवस पर ये प्रण कीजिए।
हिन्दी भाषा सदा यूँ ही फूले – फले
,
और सफल हम सभी का ये अभियान हो।
हम सदा सबकी भाषा का आदर करें
,
पर हमें अपनी हिन्दी का अभिमान हो।
अब हरेक दिन हमारा हो हिन्दी दिवस
,
हिन्द की अब तो हिन्दी ही पहचान हो।

              ---- मुकेश पाण्डेय “जिगर”