ग़ज़ल
अपने
ही मुँह मिट्ठू मिया बनने लगे हैं देखिए
चन्दन लगाकर
मूर्ख भी, पंडित बने हैं देखिए।
नीचा
दिखाना गैर को, जिनकी रही फितरत सदा,
अपनी ही
नजरों में वो खुद, अब गिर चुके हैं देखिए।
रचते
रहे जो उम्र भर, षड्यंत्र गैरों के लिए,
सबको फँसाने वाले वो, अब खुद फँसे हैं देखिए।
कैसे
करोगे तुम “जिगर”, उम्मीद गैरों से कोई,
भाई भी अब तो भाई से, जलने लगे हैं देखिए।
कैसे
ये मानूँ मैं “जिगर”, मुझसे मुतासिर वो नही,
उसने हमारे शेर ही, खत में लिखे हैं देखिए।
--- मुकेश पाण्डेय “जिगर”