इस ब्लॉग पर मै आपके साथ ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, दोहा, कविता, इत्यादि रचनाएँ साझा करता रहूँगा। Copyright@ मुकेश पाण्डेय "जिगर"
Monday, December 19, 2022
बाल काव्य (चूहा आया -चूहा आया)
चूहा आया- चूहा आया,
बिना बुलाए खुद ही आया।
घर में जाने कहाँ से आया,
कुतर- कुतर कर सब कुछ खाया।
एक पूँछ दो आँखें पाईं,
चार पैर से दौड़ लगाई।
छुप-छुपकर बिल में है रहता,
बिल्ली मौसी से है डरता।
रात हुए जब सब सो जाते,
चूहा जी तब दौड़ लगाते।
गणेशजी की हैं ये सवारी,
मुँह पर मूछें लगती प्यारी।
कागज,कपड़े,फसल,मिठाई,
खाकर के लेते अंगड़ाई।
जो मिल जाए सब कुछ खाते,
मिश्राहारी ये कहलाते।
रोज निराले खेल दिखाते,
चुन्नू मुन्नू को हर्षाते।
@ मुकेशकुमार पाण्डेय
Mo. 7874707567
Email: mukeshpandeyjigar@gmail.com
Tuesday, November 22, 2022
Muktak: wahi to chakradhari hai
वही तो चक्रधारी हैं, वही बंसी बजैया हैं
हैं पालनहार दुनिया के, वही सब के खिवैया हैं
जो दुर्योधन का वैभव त्याग कर खाएं विदुर के घर
वही माधव हैं मोहन हैं वही सबके कन्हैया है
Monday, November 7, 2022
परदेशी परदेशी जाना नही (पैरोडी)
परदेशी- परदेशी जाना नही,
गाँव छोड़ के गाँव छोड़ के,
अपने पुरखों का यारों यही है ठिकाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही.........
हमने शहर को चाहा शहर से प्यार किया
सब कुछ शहर पे यार अपना वार दिया
बन गए परदेशी परदेश का जोग लिया
ना सोचा ना समझा दिल का रोग लिया
अपनी मिट्टी से दिल का रिश्ता निभाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
अपने गांव की याद तुम्हें तड़पाएगी
कुल्हड़ वाली चाय नहीं मिल पाएगी
छोड़के गांव शहर में जो तुम जाओगे
शुद्ध हवा और पानी तक ना पाओगे
अपने खेतों में गेहूं धान उगाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
मई महीने की छुट्टी में आते हैं
जून में वो पंछी बनकर उड़ जाते हैं
मां की आंखों को आंसू दे जाते हैं
जब वो दिवाली में भी घर ना आते हैं
इतना भी क्या है जरूरी पैसा कमाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
सच कहते हैं दुनिया वाले छोड़ न घर
शहरों की वायु में भी फैला है जहर
परदेशी की किस्मत में तन्हाई है
रोकर जाने कितनी रात बिताई है
शहरों से आगे अपने गांव को बढ़ाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
मुकेश पाण्डेय जिगर
मो. 7874707567
Saturday, August 27, 2022
बड़े भाई को जन्मदिन की बधाई पर शायरी
हर फर्ज है निभाया,हर रीत है निभाई,
सौभाग्य से मिलता है,आप जैसा भाई।
आप सदा खुश रहें,स्वस्थ रहें मस्त रहें,
जन्मदिन की भैया बहुत-बहुत बधाई।
@ मुकेश पाण्डेय जिगर
Thursday, August 25, 2022
वैज्ञानिक गीत (जीवविज्ञान परिचय)
आओ बच्चों तुम्हे दिखाऐं, झलक जीवविज्ञान की,
वनस्पति प्राणी के संग में, सूक्ष्म जीव के ज्ञान की।
जय हरगोविंदजी, जय हरगोविंदजी।
जीवों में चलने वाली प्रक्रियाओं का ज्ञान है।
जीवो का अभ्यास है जिसमें वही जीव विज्ञान है,
पर्वत मैदानों से लेकर जंगल का आवास है,
तालाबों नदियों से लेकर सागर का अभ्यास है,
वर्गखंड तक सीमित नहीं है बातें इस विज्ञान की।
वनस्पति प्राणी के संग में सूक्ष्मजीव के ज्ञान की।
पिता हैं बच्चों एरिस्टोटल, विषय जीवविज्ञान के,
इन्हे अरस्तू भी कहता है, जग सारा सम्मान से।
पिता वनस्पति सृष्टि के हैं थियोफ्रेस्टस जान लो,
प्राणी सृष्टि के भी पिता हैं एरिस्टोटल मान लो,
हर गोविंद खुराना जी के नोबेल के सम्मान की,
वनस्पति प्राणी के संग में सूक्ष्मजीव के ज्ञान की
जय हरगोविंदजी, जय हरगोविंद जी।
ट्रेविरेनस लेमार्क ने बायोलॉजी शब्द दिया,
ग्रीक भाषा से बायोस और लोगोस दोनो शब्द लिया।
रॉबर्ट हुक जी कोष खोजकर राह नई बतला गए,
रॉबर्ट ब्राउन उसी कोष में कोशकेंद्र दिखला गए।
रॉबर्ट हुक ने ही डाली है नींव कोष विज्ञान की
वनस्पति प्राणी के संग में सूक्ष्म जीव के ज्ञान की।
जय हरगोविंद जी, जय हर गोविंदजी। --- मुकेश पाण्डेय
Friday, August 19, 2022
Two Divine Lovers
They are divinely designed
Their love cannot be defined
Both are just like peaceful dove
Eyes are fully filled with love
Both can take it or impart
Both have too deep ocean of heart
Depth is not determined
Their love cannot be defined
Heart is thrilled and eyes are bright going to meet in a full moon night
Both have sat on same love carts
This is the matter of two sweet hearts
Don't think matter of mind
Their love cannot be defined
Love is a boom no depression
Love is a sight no expression
Be a lover be mankind
Love by heart not by mind
Be generous and kind
Their love cannot be defined
- Mukesh Pandey Jigar
Mo. 7874707567
Monday, July 25, 2022
बचपन
कविता
शीर्षक : बचपन
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज की नाव ही बचपन था ।
जिसके नीचे खेले वो, पीपल की छाँव ही बचपन था।
कभी झील सा मौन कभी, लहरों सा तूफानी बचपन,
कभी - कभी था शिष्ट कभी, करता था मनमानी बचपन।
गिल्ली-डंडा, दौड़-पकड़, खोखो के खेल निराले थे,
साथ मेरे जो खेले मेरे, यार बड़े मतवाले थे।
जिसे छुपाते थे माता से, ऐसा घाव ही बचपन था ।
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज़ की नाव ही बचपन था।
पापा के उन कंधों की तो, बात ही थी कुछ खास।
बैठ कभी जिन पर यारों, हम छूते थे आकाश ।
मां की रोटी के आगे सब, फीके थे पकवान ।
सचमुच मेरा बचपन था, इस यौवन से धनवान।
जाति, धर्म के भेद बिना का, प्रेम भाव ही बचपन था।
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज़ की नाव ही बचपन था।
बीत गया ये बचपन भी, यौवन भी हुआ अचेत,
हाथों से फिसली जाती है, जैसे कोई रेत।
बचपन का वो दौर जिगर, फिर ला सकता है कौन,
बचपन की यादों में खोकर, हो जाता हूं मौन।
गाय, खेत, खलिहानों वाला, अपना गाँव ही बचपन था,
नन्हे - मुन्ने हाथों में कागज़ की नाव ही बचपन था ।
@ मुकेश पाण्डेय 'जिगर'- अहमदाबाद
मो. 7874707567
Sunday, July 10, 2022
सरस्वती वंदना (गीत) - कवि मुकेश पाण्डेय "जिगर"
हे हंसवाहिनी माँ, हमें ज्ञान रतन देना।
संगीत कला वाणी, विद्द्या का धन देना।
तुम ज्ञान की हो देवी, हम सब अज्ञानी हैं।
हर शब्द हैं तुमसे ही, तुमसे ही ये वाणी है ।
हमें ज्ञान के अमृत का, सागर मंथन देना।
हे हंसवाहिनी माँ....................
वीणा है हाथों में, बैठी कमलासन हो।
हर वेद ग्रंथ तुमसे, तुम ही अनुशासन हो।
जिसमें सद्बुध्दी हो, हमें ऐसा मन देना।
हे हंसवाहिनी माँ....................
अज्ञान तिमिर हर के, अब ज्ञान प्रकाश करो।
हे वीणावादिनी माँ, वाणी में वास करो।
औरों के जो काम आए, ऐसा जीवन देना।
हे हंसवाहिनी माँ....................
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