इस ब्लॉग पर मै आपके साथ ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, दोहा, कविता, इत्यादि रचनाएँ साझा करता रहूँगा। Copyright@ मुकेश पाण्डेय "जिगर"
Monday, July 25, 2022
बचपन
कविता
शीर्षक : बचपन
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज की नाव ही बचपन था ।
जिसके नीचे खेले वो, पीपल की छाँव ही बचपन था।
कभी झील सा मौन कभी, लहरों सा तूफानी बचपन,
कभी - कभी था शिष्ट कभी, करता था मनमानी बचपन।
गिल्ली-डंडा, दौड़-पकड़, खोखो के खेल निराले थे,
साथ मेरे जो खेले मेरे, यार बड़े मतवाले थे।
जिसे छुपाते थे माता से, ऐसा घाव ही बचपन था ।
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज़ की नाव ही बचपन था।
पापा के उन कंधों की तो, बात ही थी कुछ खास।
बैठ कभी जिन पर यारों, हम छूते थे आकाश ।
मां की रोटी के आगे सब, फीके थे पकवान ।
सचमुच मेरा बचपन था, इस यौवन से धनवान।
जाति, धर्म के भेद बिना का, प्रेम भाव ही बचपन था।
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज़ की नाव ही बचपन था।
बीत गया ये बचपन भी, यौवन भी हुआ अचेत,
हाथों से फिसली जाती है, जैसे कोई रेत।
बचपन का वो दौर जिगर, फिर ला सकता है कौन,
बचपन की यादों में खोकर, हो जाता हूं मौन।
गाय, खेत, खलिहानों वाला, अपना गाँव ही बचपन था,
नन्हे - मुन्ने हाथों में कागज़ की नाव ही बचपन था ।
@ मुकेश पाण्डेय 'जिगर'- अहमदाबाद
मो. 7874707567
Sunday, July 10, 2022
सरस्वती वंदना (गीत) - कवि मुकेश पाण्डेय "जिगर"
हे हंसवाहिनी माँ, हमें ज्ञान रतन देना।
संगीत कला वाणी, विद्द्या का धन देना।
तुम ज्ञान की हो देवी, हम सब अज्ञानी हैं।
हर शब्द हैं तुमसे ही, तुमसे ही ये वाणी है ।
हमें ज्ञान के अमृत का, सागर मंथन देना।
हे हंसवाहिनी माँ....................
वीणा है हाथों में, बैठी कमलासन हो।
हर वेद ग्रंथ तुमसे, तुम ही अनुशासन हो।
जिसमें सद्बुध्दी हो, हमें ऐसा मन देना।
हे हंसवाहिनी माँ....................
अज्ञान तिमिर हर के, अब ज्ञान प्रकाश करो।
हे वीणावादिनी माँ, वाणी में वास करो।
औरों के जो काम आए, ऐसा जीवन देना।
हे हंसवाहिनी माँ....................
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