इस ब्लॉग पर मै आपके साथ ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, दोहा, कविता, इत्यादि रचनाएँ साझा करता रहूँगा। Copyright@ मुकेश पाण्डेय "जिगर"
Tuesday, November 22, 2022
Muktak: wahi to chakradhari hai
वही तो चक्रधारी हैं, वही बंसी बजैया हैं
हैं पालनहार दुनिया के, वही सब के खिवैया हैं
जो दुर्योधन का वैभव त्याग कर खाएं विदुर के घर
वही माधव हैं मोहन हैं वही सबके कन्हैया है
Monday, November 7, 2022
परदेशी परदेशी जाना नही (पैरोडी)
परदेशी- परदेशी जाना नही,
गाँव छोड़ के गाँव छोड़ के,
अपने पुरखों का यारों यही है ठिकाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही.........
हमने शहर को चाहा शहर से प्यार किया
सब कुछ शहर पे यार अपना वार दिया
बन गए परदेशी परदेश का जोग लिया
ना सोचा ना समझा दिल का रोग लिया
अपनी मिट्टी से दिल का रिश्ता निभाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
अपने गांव की याद तुम्हें तड़पाएगी
कुल्हड़ वाली चाय नहीं मिल पाएगी
छोड़के गांव शहर में जो तुम जाओगे
शुद्ध हवा और पानी तक ना पाओगे
अपने खेतों में गेहूं धान उगाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
मई महीने की छुट्टी में आते हैं
जून में वो पंछी बनकर उड़ जाते हैं
मां की आंखों को आंसू दे जाते हैं
जब वो दिवाली में भी घर ना आते हैं
इतना भी क्या है जरूरी पैसा कमाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
सच कहते हैं दुनिया वाले छोड़ न घर
शहरों की वायु में भी फैला है जहर
परदेशी की किस्मत में तन्हाई है
रोकर जाने कितनी रात बिताई है
शहरों से आगे अपने गांव को बढ़ाना
इसे याद रखना कहीं भूल न जाना
परदेशी- परदेशी जाना नही...........
मुकेश पाण्डेय जिगर
मो. 7874707567
Subscribe to:
Posts (Atom)