तुमने जलाए घर कई, दीपक जलाया मत करो,
दरिया हो तुम तो पाप का, गंगा नहाया मत करो।
गर चाहते हो चैन से, गुजरे ये सारी ज़िंदगी,
ईमान अपना बेचकर, दौलत कमाया मत करो।
तुमने बहाया है लहू, मासूम औ’ निर्दोष का,
संबंधियों की मौत पर, आँसू बहाया मत करो।
इंसानियत जिंदा रहे, जीते रहो जीने भी दो,
कस्दन किसी के जिस्म पर, खंजर चलाया मत करो।
मंजिल उसे मिलती नही, जो मील के पत्थर गिने,
ठहरे बिना चलते रहो, ये वक्त जाया मत करो।
तुमने दिये हैं जख्म ही, सौगात में सबको सदा,
अपने लिए मरहम की अब, आशा लगाया मत करो।
कोशिश करो लाखों “जिगर”, विजयी बनेगा सत्य ही,
झूठों की होगी जीत ये, सपना सजाया मत करो।
@ मुकेश पाण्डेय "जिगर"- अहमदाबाद

No comments:
Post a Comment