इस ब्लॉग पर मै आपके साथ ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, दोहा, कविता, इत्यादि रचनाएँ साझा करता रहूँगा। Copyright@ मुकेश पाण्डेय "जिगर"
Monday, December 19, 2022
बाल काव्य (चूहा आया -चूहा आया)
चूहा आया- चूहा आया,
बिना बुलाए खुद ही आया।
घर में जाने कहाँ से आया,
कुतर- कुतर कर सब कुछ खाया।
एक पूँछ दो आँखें पाईं,
चार पैर से दौड़ लगाई।
छुप-छुपकर बिल में है रहता,
बिल्ली मौसी से है डरता।
रात हुए जब सब सो जाते,
चूहा जी तब दौड़ लगाते।
गणेशजी की हैं ये सवारी,
मुँह पर मूछें लगती प्यारी।
कागज,कपड़े,फसल,मिठाई,
खाकर के लेते अंगड़ाई।
जो मिल जाए सब कुछ खाते,
मिश्राहारी ये कहलाते।
रोज निराले खेल दिखाते,
चुन्नू मुन्नू को हर्षाते।
@ मुकेशकुमार पाण्डेय
Mo. 7874707567
Email: mukeshpandeyjigar@gmail.com
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