इस ब्लॉग पर मै आपके साथ ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, दोहा, कविता, इत्यादि रचनाएँ साझा करता रहूँगा। Copyright@ मुकेश पाण्डेय "जिगर"
Wednesday, August 28, 2024
तुम बेटी बन घर में आईं
क्या होते हैं रिश्ते नाते, ये सब तुमने ही सिखाया है।
झेले हैं खुशी से ज़ख्म कई, हंस के हर दर्द छुपाया है।
जब-जब धरती लाचार हुई, असुरों दुष्टों के पापों से।
दुर्गा बनकर संहार किया, दुश्मन को मार भगाया है।
जो कहते थे ये महिलाएं, बस घर के काम के लायक हैं ।
वो नज़र उठा के देखें तुमने, एरोप्लेन उड़ाया है।
था घिरा हुआ अंधियारे से, मेरे मकान का हर कोना।
तुम बेटी बन घर में आईं, खुशियों का दीप जलाया है।
भगवान को देखा है घर में, जो महिला के ही रूप में है।
जब-जब मांगा दर्शन उसने, मां का ही रूप दिखाया है।
@मुकेश पाण्डेय जिगर
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