Saturday, November 29, 2025

फिर नई शुरूआत होगी

था बहुत खुशहाल जीवन व्यंजनों का थाल जीवन चाह का गुल खिल रहा था जो भी चाहो मिल रहा था नाम मेरा चल रहा था दुश्मनों को खल रहा था बिजलियों सी धमक मुझमें सूर्य सी थी चमक मुझमें एक दिन सहसा गिरा मैं दर्द औ' दुख से घिरा मैं वक्त की है मार बंदे, यूं न थककर हार बंदे दुख को अपना मान ले तू दर्द सहना जान ले तू रात को तू बीतने दे कुछ उजाला दीखने दे फिर नई शुरूआत होगी तुझमें फिर वो बात होगी @मुकेश पाण्डेय "जिगर"